सोमवार, 21 अप्रैल 2025

आनुवांशिक पदार्थ की खोज,डीएनए से जीवन के रहस्य तक (Discovery of genetic material)

#.आनुवांशिक पदार्थ की खोज 

→आनुवांशिक पदार्थ ( Genetic material) की खोज               विज्ञान के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण घटना  रही हैं। 
 इसका विकास कई वैज्ञानिकों के कार्यों  से हुआ,  
 लेकिन संक्षेप में इसकी प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं।

→ 1900वीं शताब्दी तक वैज्ञानिकों में यह मतभेद रहा। 
      कि आनुवांशिक पदार्थ क्या हैं उस समय वैज्ञानिक प्रोटीन को आनुवांशिक पदार्थ मानते थे। पर 20 वीं शताब्दी में फ्रेडरिक मिशर नामक वैज्ञानिक ने  ‘‘ न्युक्लीन ’’ की खोज की।
जिससे पुनः विवाद शुरू हो गया कि आनुवांशिक पदार्थ प्रोटीन है या DNA यानि न्युक्लीन है। फिर  20वीं शताब्दी में कई प्रयोगों  द्वारा अनेक वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया कि DNA ही आनुवांशिक पदार्थ हैं। 



* वैज्ञानिकों के निम्न प्रयोग 


1. फ्रेडरिक ग्रिफिथ का प्रयोग (1928):

प्रयोग : 


ग्रिफिथ ने अपने प्रयोग में न्युमोनिया रोग के जीवाणु न्युमोकोकाई (Streptococcus pneumoniae) को गर्म 

किया तो वे मृत हो गये  इनमें न्युक्लिक अम्ल (DNA) के अतिरिक्त सभी पदार्थ (प्रोटीन) निष्क्रिय हो गये । अब इन्होंने इस मृत जीवाणु को न्युमोनिया रोग के एक आरोग जनक जीवाणु के साथ चूहे में प्रवेश कराने पर चूहें को न्युमोनिया रोग हो गया और वह मृत हो गया।

क्योंकि निर्जीव जीवाणु का DNA न्युक्लिक अम्ल संजीव अरोगजनक जीवाणु के आनुवांशिक लक्षणों में परिवर्तन करके इसे रोगजनक जीवाणु में  बदल दिया।


#. ग्रिफिथ न्युमोनिया (pneumonia) फैलाने वाले जीवाणु Streptococcus pneumoniae पर काम कर रहे थे। इस बैक्टीरिया की दो प्रकार की नस्लें थीं:


S-स्ट्रेन (Smooth strain): इसकी सतह पर चिकनी कैप्सूल (म्यूकोपॉलिसैक्राइड) होती थी, जो इसे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली से बचाती थी, इसलिए यह विषैली (virulent) थी और चूहों को मार देती थी।


R-स्ट्रेन (Rough strain): इसमें कैप्सूल नहीं था, इसलिए यह अविषैली (non-virulent) थी और चूहों को नुकसान नहीं पहुँचाती थी।


निष्कर्ष:

मृत S-स्ट्रेन ने कुछ "गुप्त कारक" (unknown factor) जीवित R-स्ट्रेन को स्थानांतरित कर दिया था, जिससे वे बदलकर विषैली S-स्ट्रेन बन गए।


इस प्रक्रिया को उन्होंने "Transformation" कहा।



महत्व:


ग्रिफिथ का यह प्रयोग यह सुझाव देने वाला पहला प्रमाण था कि कोई आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) एक जीवाणु से दूसरे में स्थानांतरित हो सकता है।


बाद में, 1944 में, Avery, MacLeod और McCarty ने यह सिद्ध किया कि यह "गुप्त कारक" वास्तव में DNA था।


2. ओस्टवाल्ड एवेरी का प्रयोग (1944)

प्रयोग :

→ ओस्टवाल्ड एवेरी और इनके सहयोगी कोलिन मैकलियोड (Colin macleod) , मैकिनले मैकार्टी (Maclyn mccarty)
वैज्ञानिकों ने मिलकर  यह  पता लगाने की कोशिश की कि यह "रूपांतरण कारक" (Transforming factor) असल में कौन-सा रसायन है। 

उन्होंने ग्रिफ़िथ के प्रयोग को आगे बढ़ाया और अलग-अलग जैविक अणुओं (प्रोटीन, डीएनए, आरएनए, वसा आदि) को हटाकर परीक्षण किया।

प्रयोग की मुख्य बातें:


उन्होंने मरे हुए विषैले बैक्टीरिया से अलग-अलग अणु निकाले।

जब उन्होंने प्रोटीन और आरएनए को हटाया, तब भी रूपांतरण होता रहा।

लेकिन जब डीएनए को नष्ट किया गया (DNAase एंजाइम से), तब रूपांतरण नहीं
→अत: इस बात से यह स्पष्ट है कि DNA ही आनुवांशिक पदार्थ हैं।

निष्कर्ष:- ‘‘डीएनए ही वह मूल कारक है जो आनुवांशिक सूचनाओं को आगे बढ़ाता है।’’


महत्व - 

• यह प्रयोग आनुवांशिक ( genetic) क्रांति का कारण बना ।
• बाद में हर्चे और चेस ने इसे और भी मजबूत सबूत के साथ पुष्टि की।


3. हर्शे और चेइस का प्रयोग (1952):


अल्फ्रेड हर्से (Alfred Hershey)

मार्था चेस (Martha Chase)


प्रयोग :

→ वैज्ञानिकों को यह पता लगाना था कि आनुवांशिक पदार्थ (Genetic Material) कौन है — DNA या प्रोटीन।


→ 1940 के दशक तक वैज्ञानिकों को संदेह था कि आनुवांशिक जानकारी प्रोटीन में है, क्योंकि प्रोटीन जटिल होते हैं।

→ DNA को सरल समझा जाता था, इसलिए कुछ लोग शक करते थे कि वह आनुवांशिक पदार्थ नहीं हो सकता।


प्रयोग में इस्तेमाल किया गया:


→ Bacteriophage (बैक्टेरियोफेज) — एक प्रकार का वायरस जो बैक्टीरिया को संक्रमित करता है।


रेडियोधर्मी तत्व:


→ फास्फोरस-32 (P-32) — DNA को चिह्नित करने के लिए (क्योंकि DNA में फास्फोरस होता है)।


→सल्फर-35 (S-35) — प्रोटीन को चिह्नित करने के लिए (क्योंकि प्रोटीन में सल्फर होता है, DNA में नहीं)।


प्रयोग की विधि (Steps):


1. उन्होंने दो समूह बनाए:

→ एक समूह में फेज वायरस के DNA को P-32 से चिह्नित किया।

→ दूसरे समूह में फेज वायरस के प्रोटीन को S-35 से चिह्नित किया।

2. इन फेजों को E. coli बैक्टीरिया से संक्रमित कराया गया।

3. संक्रमण के बाद मिश्रण को ब्लेंडर से घुमाया गया ताकि फेज के बाहरी हिस्से (प्रोटीन कोट) बैक्टीरिया से अलग हो जाएं।

4. फिर इसे सेंट्रीफ्यूज किया गया ताकि भारी बैक्टीरिया नीचे बैठ जाएं और हल्के फेज ऊपर रहें।


5. देखा गया:

→ जिन फेज का DNA चिह्नित था (P-32), उनकी रेडियोधर्मी सामग्री बैक्टीरिया के अंदर पाई गई।

→ जिन फेज का प्रोटीन चिह्नित था (S-35), उनकी रेडियोधर्मी सामग्री बाहर ही रह गई।


निष्कर्ष (Conclusion):


DNA ही आनुवांशिक पदार्थ है, जो अगली पीढ़ी में जानकारी ले जाता है।


प्रोटीन आनुवांशिक जानकारी नहीं ले जाता।


4. वॉटसन और क्रिक (1953):


→वॉटसन (Watson) और क्रिक (Crick) का प्रयोग मुख्य रूप से डीएनए (DNA) संरचना की खोज से जुड़ा है।

→  1953 में जेम्स वॉटसन और फ्रांसिस क्रिक ने डीएनए की द्विकुंडलित (Double Helix) संरचना का मॉडल प्रस्तावित किया था। उनके प्रयोग और अध्ययन ने यह स्पष्ट किया कि डीएनए दो चेन से बना है, जो एक-दूसरे के चारों ओर कुंडली बनाकर जुड़ी हुई हैं।


 * मुख्य बिंदु :


मॉडल निर्माण:

→ वॉटसन और क्रिक ने प्रयोगशाला में डीएनए के संरचनात्मक मॉडल बनाए।


एक्स-रे विवर्तन (X-ray Diffraction) डेटा का उपयोग:

→  उन्होंने रोज़लिंड फ्रैंकलिन और मॉरिस विल्किंस के एक्स-रे डेटा का विश्लेषण किया, जिससे उन्हें डीएनए के हेलिकल स्वरूप का अंदाज़ा हुआ।


→ आधार जोड़ीकरण (Base Pairing): उन्होंने यह सिद्ध किया कि एडेनिन (A) हमेशा थायमिन (T) के साथ और गुआनिन (G) हमेशा साइटोसिन (C) के साथ जुड़ता है।




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